विजय दशमी
और अंततः रावण
फिर से एक बार जल गया ।
बुराई का सूरज
एक बार फिर से ढल गया ।
परंतु सत्य कहते
हुए शब्द भी शर्मिंदा है ।
रावण मरा नहीं
हमारे भीतर अभी भी जिंदा है ।
कल से फिर अबोध
बच्चियां उसका शिकार होंगी ।
उसके सामने फिर से
बेबस, मजबूर और लाचार होंगी ।
कल से वह फिर किसी
घायल को सड़क से नहीं उठाएगा ।
केवल उस तड़पते मानव
का वीडियो बनाएगा ।
वास्तव में हम लोगों को
सादगी वाला राम नहीं,
ताकत से भरा
रावण आकर्षित करता है ।
इसीलिए वह प्रतिवर्ष केवल
बाहर से जलता है
भीतर से नहीं मरता है ।
विजय दशमी को हम अपने
जीवन में उसी दिन उतार पाएंगे ।
जिस दिन हम अपने भीतर के
रावण को मार पाएंगे ।
-- दिनेश
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