स्वतंत्रता दिवस पर
माथे पे रोली का तिलक किया और रण में लड़ने भेज दिया, अपनी आंख के नूर को जिसने देश पे मरने भेज दिया। मां की इस कुर्बानी का फिर कोई तौल नहीं होता, भावनाओं के रिश्ते हैं यह इनका मोल नहीं होता। मां के मन की पीड़ा से फिर धरती भी फट जाती है, चंदन करके जिस को भेजा जब उसकी अर्थी आती है। फिर सपनों में आकर के वो दस्तक सी दे जाता है, और आंखों के भीतर बस कर नींदे भी ले जाता है। आहट सी कोई होती है तो लगता है। वो ही आया है, आंख खुली तो देखा यह तो मात्र भ्रम। की छाया है। तब उस मां का बलिदान भी शहीदों सा उपयोगी है, तुम उसको भी जी कर देखो जिसने ये पीड़ा भोगी है। जब मेहंदी वाले हाथों से खत कोई लिखा जाता है जब सिंदूरी गालों पर पलकों से पानी गिर आता है। जब लाली वाले होठों से सिसकी सी कोई बहती है, जब छुप छुप कर वो रोती है पर मुंह से कुछ ना कहती है। जब भावनाओं और जज्बातों को फर्ज से तोला जाता है जब करवा चौथ का व्रत भी डर के साए में खोला जाता है। जब सुहाग सेज के बदले में